Friday, October 2, 2009

विजय संकल्प ----------

सदियों पहले श्री राम ने रावन को मारकर जिस विजय अभियान को प्रारम्भ किया था उसकी याद मे हम हर साल उत्सब मानते है ! यह परब मुझे बचपन से ही पसंद है , चुकी विजयादशमी असत्या पर सत्य की जीत का संदेश देता है ! हमें भी सच की जीत के लिये प्रण लेना चहिये! जीवन अपने आप मे एक बहुत बड़ा संग्राम ही तो है मन मे हर समय अच्छी और बुरी बातों के बीच दुंद चलता है , और यह हम पर हो ता है की हम किसे चुनते है ! बैसे इस युग मे जिंदगी की खुसी तय करने का बस एक ही पयमाना रह गया है , और बह है कामयाबी , फिर बह कैसे भी आयी हो , यही बजह है की आज दुनिया मे जितनी अशांति है उतनी पहले कभी नही थी , जीबन तो सत्य शिव और सुंदर है! और इसके बिना इंसान की जिंदगी कुछ भी हो , वह सफल नही कही जा सकती , यह बैसा ही है जैसे आप के जिस्म मे से साँस खींच ले जाय और सरीर को छोड़ दिया जाय तो आप क्या रह जायगे , कुछभी नही , इसी तरह धन हो और शान्ति न हो या कामयाबी हो लेकेन सुकून न हो तो जीवन के अंत मे आप ख़ुद को हारा हुआ ही महसूस करेगे दुनीया मई kई लोगों के साथ यही हुआ है इसलिये जीवन मे विजय का संकल्प ज़रूर ले लेकिन कोशिश करे के उस संकल्प को इस्वर का आशिस जरुर मिले !आप दो कदम उस की तरफ चल कर देकिये वह आपके संकल्प को पूरा करने चार कदम आगे आएगा !

Tuesday, September 1, 2009

हाँथ उठाओ ..............

हम उस देश मे जी रहे है , जहाँ छोटी सी गली से लेकर देल्हीतक हज़ार तरह के कोहराम मचे है ! एइसे मे कुछ भी कहने का मतलब ? पर क्या करे, इस मुल्क की तरह हम भी मजबूर है ,जो चुप नही रह सकते ! मै कुछ नया नही कह रहा हूं जो बार-बार कहा जा चुका है बस उस की ही याद दिला रहा हूँ , आपको यह सोचकर कभी हैरत नहीं होती की धरती पर भारत एक ही देश है जिश पर सबसे ज़्यादा महापुरुसो ने जन्म लिया है , मानब जाती के इतिहास मै और कहीं नहीं , लेकिन आज सबसे दीनहीन और कमज़ोर कौमों के साथ हम खड़े है जिस देश का संबिदान से लेकर शिक्षा तकनीक और साइंस तक सब कुछ उदार का हो क्या उसे प्रगति कहा जाएगा कभी हमारा साइंस और दर्शन दुनिया की शिखर पर था लेकिन जैसे शिखर से ghati में गिरना एक नियम है बैसे ही हिंदुस्तान के पतन की कहानी है दरअसल एक हज़ार साल की लगातार गुलामी ने इस देश का आत्म विस्वास छीन लिया साथ ही मनोवैघ्यानिक रूप से भी कमज़ोर कर दिया १९४७ में आज़ादी के बाद भी हमारे नेता देश का आत्म सम्मान पैदा नही कर पाए लिहाज़ा आपनी जरों से टूट चुका देश नक़ल के रस्ते पर चल पड़ा आज दुनिया में हिंदुस्तान एक ऐसा अद्कचरा समाज है जिस के पास अपना कुछ भी नही और तो और हमारे सोचने का ढंग भी उदारु है हमारे समाज में दो तरह के लोग है पहले जो पश्चिम को आदर्श मानकर हवाई दुनिया में जी रहे है तो दुसरे जो रोटी की चिंता में खो कर देश के लिए सोच ही नही पाते ! शायद इसीलिए कोई बदलाव के बारे मै सोचता नही है ! देश में कई महापुरुष पैदा हुए जो पुरी जिंदगी मुल्क के लिए ही काम करते रहे! पर क्या लोग और समाज बदल पाया! नही ! हम उसी तरह आँख बंद करे सालों से जिए चले जा रहे है बिना इस बात की परवाह किए की हम में और दुनिया में कोई मेल ही नही रह गया ! जरा गौर से सोचिये हम किस तरफ़ जा रहे है !

Sunday, August 30, 2009

कितने जिन्ना ......... भाग 2

......... जिन्ना क्या थे और क्या नहीं उससे आज के हिन्दुस्तानी को सिर्फ़ इतना लेना देना है, की उनके समय के नेताओं ने जो बीज बोए उनको हम काट रहे है ! फ़िर और भी गम है ज़माने मे जिन्ना के सिवा , हमारे नेताओं को गरीबी आतंकबाद बुख्मारी और इसे तरह की और बातें नही दिखतीं जो मुल्क के आम आदमी का खून रोज चूस रही है ! कभी किसे नेता ने कोई एसे किताब नहीं लिखी जिसमे हिंदुस्तान के गरीबों के बारे मे कुछ लिखा हो, कभी हमारे बोटो पर एअश करेवालों को इस बात ने बेचीन नहीं किया के दाल के भाब क्या है , इस देश मे केजी क्लास मे बच्चे का दाखिला कराने के लिए भी सिफरिएस की ज़रूरत होती है एक बाल्टी पानी के लिए मेरे देश का आम आदमी घंटों कतार मे खड़ा रहता है ! दूर गओवों मे बिजली का इतजार इसा हो ता है जैसे अंधे के लिए आखों का , बढे सहरों मे घर से निकलता आदमी आतंक के धमाकों से डरता है तो छोटे कस्वो मे गुंडों और पुलिसवालों से , पर हमारे महान सोओचवाले नेताओं के लिये सायद यह कोई किताब लिखने का मुद्दा थोड़े ही है। सही भी है आम आदमी पर लिखी किताब भला कोई हजारों लाखों मे थोड़े ही बिकेगी ! उसके लिए तो बड़े लोग चाहिए फ़िर मे सोचता हूँ के आख़िर कितने जिन्ना इस मुल्क मे जिंदा है, वो एक जिन्ना था जिसने एक बंटवारा कराया , अब तो लोग कई -कई नामों पर बाँट रहे है , तो क्या जिन्ना को मरा माना जे या फिर जिन्ना अभी और भी है ! क्या आप इस पर सोओच रहे है !

Tuesday, August 25, 2009

कितने जिन्ना.............

आजकल नेताओं से लेकर मीडिया तक और खास से लेकर आम आदमी तक हर जगह एक नाम सुनने को मिल रहा है ! और वो नाम है जिन्ना का ! इतिहास को जो पढ़ चुके है वो सायद इस नाम को जानते होंगे लेकन जो मैथ और बिज्ञान पढ़ते रहे बे जिन्ना को कम जानते होगे! जिन्ना आज़ादी की लडाई के समय देश के बड़े नेता थे ! कभी देश के लिये सब कुर्बान करने को तैयार थे , फिर उन के अंदर मुसलानों के लिए अलग मुल्क का ख्याल पैदा हुआ , और हिंदुस्तान के लिए जिन्ना एक नासूर बन गया जिसका ज़ख्म आज़ादी के सालों बाद भी नही भर सका ! लोग मरे देश बंटा, दुनीया मे यह पहली बार हुआ की कोई मुल्क मजहब के आधार पर बांटा गया ! किसी ने कहा जिन्ना की गलती तो कोई कहता है गाँधी और नेहरू की भूल , लेकिन आज इनमे से कोई भी नेता सही और ग़लत का जाबाब देने को जिंदा नही है , खेअर हम बात करें आज की , मौत के कई सालों बाद आख़िर जिन्ना इस मुल्क मे फिर क्यूँ पैदा हो रहा है ! वो लोग जो कभी भगवा झंडे के तले खड़े होकर जिन्ना को गालियां देते नहीं थकते थे , वो उसी जिन्ना को अब सेकुलार बताते नही थक रहे है ! उन जिन्ना को जिसने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर लाखों हिन्दुओं और सिखों के कत्ले आम की तारीफ की थी , जिंदगी भर सेक्स कुंठा से जूझने वाले जिन्ना हिन्दुस्तान को हमेशा की अशांति दे गए ] part - 1

Monday, August 24, 2009

ये इन्सान है .............

पल पल रंग बदलता है ! इन्सान को रंगिनिया बहुत पसंद है ! इसलिए ग्रिगेत सा लगता है ! बन्दर की तरह गुलातिया मरता है बिल्ली की तरह नोचता है कुत्ते की तरह भोक्ता भी है हलाकि उसमे बफादारी नही रही ! सीधी सी बात ये है की बांकी सबकुछ है इन्सान के अलाबा !एक खास बात और की जबतक चोरी ना पकडाये हर आदमी साहूकार है ! पर इन्सान की इन हरकतों के कारन इंसानियत शर्मशार हो रही है ! बड़े बड़े अपराध हो रहे है और उनकी रोकथाम के लिए भी अपराधी ही तेनात हैंमेरे कहने का सीधा सा अभिप्राय ये है की खुदा की rah से भटका इन्सान आज अपनी फितरत से भटक कर जानबर बन गया है ! किशी ने इस्वर का बेटा कहा तो किशी ने आदमी का रिश्ता बंदरो से जोड़ दिया ! ऐडम और एब के दौर से गुजरकर मसिनो के ज़माने तक सब बदला इन्सान भी ! पर यहाँ तक आते आते आदमी ने कुदरत को भी आपना दुश्मन बना लिया अपने को दुनेया का निर्माता समझने वाला आज बिनाश की चोटी पर जा बैठा पर मेरे यह सब कहने का मतलब क्या है ! क्या आप यह सब नहीं जानते ?

Thursday, August 20, 2009

हो गई देश भक्ति की रस्म अदायागी------------

हर साल की तरह १५ अगस्त आया और चला गया और इसी के साथ देश भक्ति की रस्म अदायगी भी हो गई ; आजदी के शाठ सालो के अंदर ही इतना थका हुआ मुल्क दुनिया मे कोई दूसरा सायद ही हो जिस् आज़ादी के रोंगटे खडे कर देने वाली कुर्वानिया दी गई हो और जो देश एक हज़ार सालो तक गुलाम रहा हो उस के रहनेवाले शहीदों को चंद सालो मे भुला दे यह भी कम हैरत की बात नही है पर क्या फर्क पड़ता है ! हम १५ ऑगस्ट और २६ जनबरी को लंबे लंबे भाषण दे कर छुट्टी पा लेते है और बाकि दिन रोज गाँधी जी के फोटो के नीचे रिश्वत ! मेरी आप से बिनती है की या तो देश भक्ति का यह दिखावा बंद कर दे!